Dead Internet Theory : एआई और बॉट्स के कब्ज़े से बदलती डिजिटल दुनिया

Wed 26-Nov-2025,12:33 PM IST +05:30

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Dead Internet Theory : एआई और बॉट्स के कब्ज़े से बदलती डिजिटल दुनिया
  • इंटरनेट पर मानव आवाज़ें एआई-जनित कंटेंट और बॉट्स के विशाल प्रवाह के बीच कमजोर और दबती दिखाई दे रही हैं। सोशल मीडिया पर नकली एंगेजमेंट, एआई प्रोफाइल और प्रोपेगेंडा अकाउंट्स वास्तविकता और जनभावना को गहराई से प्रभावित कर रहे हैं।

  • विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि पारदर्शिता और डिजिटल साक्षरता नहीं बढ़ी, तो इंटरनेट “मानव-केंद्रित” नहीं रह जाएगा।

Delhi / New Delhi :

नई दिल्ली / इंटरनेट को कभी स्वतंत्रता, रचनात्मकता और वैश्विक मानव जुड़ाव का विशाल डिजिटल महाद्वीप कहा जाता था। यहां हर विचार, हर आवाज़ और हर अनुभव बिना किसी बाधा के सामने आ सकता था। वर्षों तक यह दुनिया सच्चे इंसानों की दुनिया रही- लेकिन आज, इंटरनेट के बड़े हिस्से को देखकर कई उपयोगकर्ताओं को एक अजीब ख़ामोशी, एक अजीब‐सी कृत्रिमता महसूस होने लगी है। उन्हें लगता है कि कुछ बदल गया है, कुछ खो गया है। यही भावना ‘डेड इंटरनेट थ्योरी’ को जन्म देती है एक ऐसी मान्यता कि इंटरनेट पर दिखने वाला अधिकांश कंटेंट अब इंसानों द्वारा नहीं, बल्कि एआई, बॉट्स और स्वचालित नेटवर्क द्वारा बनाया जा रहा है।

डेड इंटरनेट थ्योरी: आखिर यह कहती क्या है?

डेड इंटरनेट थ्योरी का मूल दावा यह है कि 2016–2017 के बाद इंटरनेट धीरे-धीरे “मानव इंटरनेट” से “एआई इंटरनेट” में बदलने लगा। तस्वीरें, वीडियो, कमेंट्स, मीम्स, ब्लॉग हर जगह इंसानी दिमाग की जगह मशीनों ने ले ली।

थ्योरी कहती है कि:

  • इंटरनेट पर मौजूद पोस्ट्स का बड़ा हिस्सा अब बॉट अकाउंट्स बनाते हैं।

  • कई वायरल ट्रेंड असल में एआई-निर्मित पैटर्न और एंगेजमेंट स्क्रिप्ट्स के कारण फैलते हैं।

  • जिन अकाउंट्स पर लाखों लाइक्स दिखते हैं, उनमें से अधिकांश मशीनों का जाल हो सकता है।

सबसे चौंकाने वाली बात यह कि कुछ शोधों में पाया गया है कि इंटरनेट का लगभग 47% ट्रैफ़िक सिर्फ बॉट्स द्वारा उत्पन्न होता है। यह संख्या 10 साल पहले की तुलना में दोगुनी है।

एआई कंटेंट: जो हम देखते हैं, क्या वह सच में ‘मानव’ है?

ChatGPT, Midjourney, DALL·E जैसे टूल्स ने टेक्स्ट, वीडियो और इमेज को इतना वास्तविक बना दिया है कि असली और नकली में फर्क करना मुश्किल हो गया है।

उदाहरण के तौर पर:
फेसबुक पर “Shrimp Jesus” खोजें आपको सैकड़ों ऐसी तस्वीरें मिलेंगी जो एआई ने बनाई हैं लेकिन वास्तविकता जैसी दिखती हैं। यह वह दुनिया है जहां मशीनें मनुष्य का रूप धारण कर चुकी हैं।

उपयोगकर्ताओं को अब अक्सर लगता है कि:

  • कमेंट्स रोबोटिक हैं

  • बातचीत का प्रवाह एक जैसा है

  • अलग-अलग अकाउंट एक ही तरह का कंटेंट पोस्ट करते हैं

  • सोशल मीडिया फीड से मानव भावनाओं वाली “गरमी” गायब हो चुकी है

यह परिवर्तन सिर्फ तकनीकी प्रभाव नहीं, बल्कि एक मानवीय प्रभाव भी बन चुका है।

मनोवैज्ञानिक प्रभाव: इंटरनेट पर अकेले इंसान की बढ़ती बेचैनी

कई युवा उपयोगकर्ताओं ने बताया कि इंटरनेट अब “जिंदा” नहीं लगता।
लोग कहते हैं-

  • “कमेंट्स इंसानों जैसे नहीं लगते।”

  • “लाखों व्यूज़ पर भी कोई असली बातचीत महसूस नहीं होती।”

  • “सब कुछ जैसे मशीनों के लिए बनाया गया हो।”

यह भावना डिजिटल अकेलेपन को बढ़ाती है।
सोशल मीडिया जहां कभी दोस्ती, हंसी और संवाद पैदा करता था, वही अब एक कांच की दीवार जैसा लगता है चमकती, मगर अंदर से खाली।

AI की वजह से लोग खुद को और भी “अलग-थलग” महसूस करने लगे हैं क्योंकि मशीनें इंसानों की जगह ले रही हैं।

ऑर्गैनिक इंटरैक्शन में गिरावट- क्या इंसानी आवाज़ दब रही है?

ऑनलाइन दुनिया में पहले विविधता दिखाई देती थी-
ब्लॉग्स, फ़ोरम, विवाद, अलग-अलग राय…

लेकिन पिछले 5–7 वर्षों में:

  • एक ही तरह के पोस्ट

  • बार-बार दोहराए जाने वाले मीम्स

  • कमेंट्स में एक जैसे वाक्य

  • “वायरल फॉर्मूला” वाले वीडियो

इन सभी ने इंटरनेट को एकरस और मशीन-संचालित बना दिया है।

लोग महसूस करते हैं-
हम असली आवाज़ें नहीं सुन रहे… हम किसी सिस्टम द्वारा डिजाइन किया कंटेंट देख रहे हैं।”

बॉट नेटवर्क: जो जनमत को बदल रहे हैं

कई रिपोर्टों में पाया गया है कि बॉट्स ने कई देशों की राजनीति, चुनाव और सामाजिक नैरेटिव को प्रभावित किया है।

  • 2018 में 1.4 करोड़ ट्वीट्स में गलत सूचना फैलाने में बॉट्स की भारी भूमिका पाई गई।

  • 2019 में सामूहिक गोलीबारी की घटनाओं से जुड़े नैरेटिव बॉट्स द्वारा बदले गए।

  • हाल ही में 10,000 से अधिक बॉट अकाउंट्स ने X (Twitter) पर प्रो-क्रेमलिन संदेश फैलाए।

यह सिर्फ तकनीकी मुद्दा नहीं यह लोकतंत्र, समाज और मानसिकता से जुड़ा मुद्दा है।

कॉरपोरेट और सरकारी ढांचे का प्रभाव

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इंटरनेट पर कंटेंट “स्वाभाविक रूप से” नहीं फैल रहा।
बल्कि बड़े सिस्टम तय करते हैं कि हम क्या देखें–

  • कौन सा ट्रेंड ऊपर आए

  • कौन सी खबर गायब हो

  • किन विषयों की चर्चा दिखाई दे

एल्गोरिदम अब सिर्फ मनोरंजन नहीं तय कर रहे, बल्कि विचार भी आकार दे रहे हैं।
यह मानव सोच का स्वचालन है।

एआई इन्फ्लुएंसर और नकली ह्यूमनिटी

अब सैकड़ों ऐसे इन्फ्लुएंसर मौजूद हैं जो असल में कभी जन्मे ही नहीं।
पूरे-पूरे सोशल मीडिया प्रोफाइल एआई द्वारा चलाए जाते हैं:

  • पोस्ट

  • वीडियो

  • फोटोशूट

  • कमेंट

  • यहां तक कि बातचीत

लाखों फॉलोअर्स यह तक नहीं जानते कि वे एक मशीन के साथ इंटरैक्ट कर रहे हैं।

यह ट्रेंड आने वाले समय में और भी तेज़ होने वाला है।

सर्च इंजन भी बदल गए, इंसान गायब, कंटेंट फ़ार्म हावी

पहले गूगल पर:

  • असली ब्लॉग

  • चर्चा वाले फ़ोरम

  • विशेषज्ञों की राय

मिलती थी।

आज:

  • SEO कंटेंट

  • एआई जनित आर्टिकल

  • एफिलिएट लिस्टिकल

  • क्लिकबेट वेबसाइट

खोज परिणामों का बड़ा हिस्सा मशीनों द्वारा लिखा गया लगता है।

क्या इंटरनेट सचमुच "मर" गया है?

थ्योरी के समर्थक कहते हैं-
“इंटरनेट अब इंसानों की जगह मशीनों का मैदान बन चुका है।”

लेकिन आलोचक कहते हैं-
“इंटरनेट नहीं मरा, बस बदल गया है। लोग पब्लिक प्लेटफॉर्म छोड़कर निजी चैट, ग्रुप और डिस्कॉर्ड में चले गए हैं।”

सच इन दोनों के बीच है।
इंटरनेट पर अब भी करोड़ों इंसान हैं-
लेकिन उनकी आवाज़, उनकी पहचान, उनकी मौजूदगी
एक विशाल कृत्रिम शोर में खोने लगी है।

यह मृत नहीं, बल्कि कृत्रिम रूप से जीवित इंटरनेट है।

आगे का रास्ता: मानवता को कैसे बचाएं?

यदि इंटरनेट को मानव-केंद्रित रखना है, तो:

  • पारदर्शिता बढ़ानी होगी

  • बॉट डिटेक्शन मजबूत होना चाहिए

  • डिजिटल साक्षरता आवश्यक है

  • एआई कंटेंट को लेबल करना जरूरी है

  • प्लेटफॉर्म एंगेजमेंट से अधिक प्रामाणिकता को महत्व दें

इंटरनेट को “जिंदा” बनाना उसी पर निर्भर करता है जिसने इसे बनाया, हम इंसान।